Top 5 Mustard Varieties 2025:“2025 में ये 5 सरसों की किस्में किसानों की किस्मत बदल देंगी – जानें कौन सी है नंबर 1!”

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Top 5 Mustard Varieties 2025:भारत में रबी सीजन की प्रमुख नकदी फसलों में सरसों (Mustard) का नाम सबसे ऊपर आता है। यह न केवल किसानों की आमदनी बढ़ाने वाली फसल है बल्कि देश में खाद्य तेल उत्पादन की रीढ़ भी है। हर साल भारत में लाखों हेक्टेयर में सरसों की बुवाई की जाती है, और किसान ऐसी किस्में चुनना चाहते हैं जो ज्यादा उपज, अधिक तेल प्रतिशत और रोग प्रतिरोधी क्षमता रखती हों।

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साल 2025 में कृषि वैज्ञानिकों और ICAR (भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद) द्वारा विकसित कुछ नई और उन्नत सरसों की किस्में चर्चा में हैं, जो खासकर उत्तर भारत और बिहार के किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो रही हैं। इस रिपोर्ट में हम जानेंगे भारत की Top 5 Mustard Varieties 2025, उनकी विशेषताएं, तेल प्रतिशत, उपज क्षमता और किन राज्यों में ये सबसे ज्यादा उपयुक्त हैं।

Pusa Bold – भरोसेमंद और उच्च उपज देने वाली किस्म

पुसा बोल्ड (Pusa Bold) पिछले कई वर्षों से किसानों की पहली पसंद रही है और 2025 में भी इसका दबदबा बना हुआ है। यह किस्म विशेष रूप से राजस्थान, हरियाणा, पंजाब और पश्चिम उत्तर प्रदेश के इलाकों के लिए उपयुक्त मानी जाती है।

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इस किस्म की मुख्य विशेषताएं हैं:

  • औसत उपज 20–25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक।
  • तेल की मात्रा लगभग 38–40%।
  • रोगों के प्रति सहनशील और मध्यम अवधि (135–140 दिन) में तैयार।
  • कम तापमान में भी अच्छी पैदावार।

पुसा बोल्ड की लोकप्रियता इस बात से झलकती है कि इसे राष्ट्रीय बीज निगम, राज्य कृषि विभाग और कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा सबसे ज्यादा अनुशंसित किस्मों में गिना जाता है।

किसान भाइयों के लिए यह किस्म उन क्षेत्रों में आदर्श है जहाँ रबी सीजन के दौरान ठंड अधिक पड़ती है और मिट्टी मध्यम दोमट होती है।

Top 5 Mustard Varieties 2025,Pusa Mustard 25 (PM 25) – देर से बुवाई वाले खेतों के लिए बेहतरीन

जब खेत में धान की कटाई देर से होती है, तो किसान को रबी फसल की बुवाई में देरी करनी पड़ती है। ऐसे में “Pusa Mustard 25” एक उत्कृष्ट विकल्प है। यह किस्म देर से बोने पर भी बेहतर उपज और तेल प्रतिशत बनाए रखती है।

मुख्य विशेषताएं:

  • तेल प्रतिशत: 41–42%
  • उपज क्षमता: 20–22 क्विंटल प्रति हेक्टेयर
  • देर से बुवाई के बाद भी समय पर पकने वाली किस्म (120–130 दिन)।
  • रोगों जैसे व्हाइट रस्ट (White Rust) और अल्टर्नारिया ब्लाइट के प्रति सहनशील।

यह किस्म विशेष रूप से बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश और पूर्वी उत्तर प्रदेश के किसानों के लिए उपयुक्त है। जो किसान देर से धान की फसल काटते हैं, वे इस किस्म से सरसों की खेती करके बेहतर मुनाफा कमा सकते हैं।

RH-749 – आधुनिक हाइब्रिड सरसों की पहचान

भारत में 2025 में सबसे चर्चित हाइब्रिड किस्मों में से एक है RH-749। इसे हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (Hisar) ने विकसित किया है और यह आज व्यावसायिक खेती में तेजी से लोकप्रिय हो रही है।इस किस्म की खासियतें:

  • तेल प्रतिशत: 42–43%, जो अन्य किस्मों से अधिक है।
  • औसत उपज: 25–30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर
  • फसल अवधि: 130–135 दिन।
  • रोग प्रतिरोधक और सिंचित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त।

RH-749 उन किसानों के लिए सबसे बेहतर है जिनके पास सिंचाई की सुविधा और उर्वर मिट्टी है। इसकी बुवाई अक्टूबर के पहले या दूसरे सप्ताह में करने पर उत्कृष्ट परिणाम मिलते हैं।यह किस्म खास तौर पर राजस्थान, हरियाणा, बिहार, पंजाब और मध्य प्रदेश में तेजी से फैल रही है और किसानों के लिए अधिक मुनाफे का जरिया बन रही है।

NRCHB-101 – रोग प्रतिरोधक और स्थिर उत्पादन वाली किस्म

NRCHB-101 भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा विकसित एक ऐसी किस्म है जो रोगों के प्रति काफी प्रतिरोधक मानी जाती है। यह खासकर उन इलाकों के लिए सुझाई जाती है जहाँ श्वेत जंग, अल्टर्नारिया ब्लाइट और पत्तियों के धब्बे जैसी समस्याएं आम हैं।

मुख्य विशेषताएं:

  • तेल प्रतिशत: 41–42%
  • औसत उपज: 22–24 क्विंटल प्रति हेक्टेयर
  • रोग प्रतिरोधक और तेज ठंड सहन करने योग्य।
  • खेत में नमी और तापमान परिवर्तन को सहन करने की क्षमता।

NRCHB-101 को खास तौर पर पूर्वी भारत के राज्यों — बिहार, पश्चिम बंगाल और झारखंड के किसानों के लिए अनुशंसित किया गया है। यह किस्म कम लागत में अच्छी उपज देने के लिए जानी जाती है।

राजेंद्र सरसों-1 – बिहार की गर्व की किस्म

बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर द्वारा विकसित राजेंद्र सरसों-1 राज्य के किसानों के बीच बहुत लोकप्रिय है। यह किस्म बिहार की जलवायु और मिट्टी के अनुसार पूरी तरह अनुकूल है।

विशेषताएं:

  • औसत उपज: 18–22 क्विंटल प्रति हेक्टेयर
  • तेल प्रतिशत: 39–41%
  • पौधे की ऊँचाई मध्यम, फलियाँ बड़ी और बीज मोटे।
  • रोग प्रतिरोधक और देर से बोने पर भी स्थिर उपज।

बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश के किसान यदि स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार खेती करना चाहते हैं तो यह किस्म सर्वोत्तम विकल्प है।

बिहार में सरसों की खेती के लिए सुझाव

  • बुवाई का समय: अक्टूबर के पहले पखवाड़े में बुवाई सबसे उपयुक्त रहती है।
  • मिट्टी: हल्की-मध्यम दोमट और अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी सरसों के लिए श्रेष्ठ।
  • बीज मात्रा: 4–5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर पर्याप्त है।
  • खाद: 80–100 किग्रा नाइट्रोजन, 40 किग्रा फॉस्फोरस और 20 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर देना चाहिए।
  • रोग नियंत्रण: व्हाइट रस्ट व अल्टर्नारिया ब्लाइट से बचाव के लिए फफूंदनाशी (Mancozeb या Metalaxyl) का छिड़काव।
  • कटाई: जब 80% फलियाँ पीली हो जाएँ, तो फसल काट लें ताकि दाने झड़ें नहीं।

निष्कर्ष

साल 2025 सरसों की खेती करने वाले किसानों के लिए नई उम्मीदें और अवसर लेकर आया है। वैज्ञानिकों द्वारा विकसित इन नई किस्मों ने खेती को न केवल लाभदायक बल्कि कम जोखिम वाला भी बना दिया है।यदि किसान अपने क्षेत्र की मिट्टी, जलवायु और बुवाई समय के अनुसार सही किस्म का चयन करते हैं — तो वे प्रति हेक्टेयर 25–30 क्विंटल तक की उपज और उच्च तेल प्रतिशत हासिल कर सकते हैं।

सरकार और कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा चलाए जा रहे रबी फसल मिशन” और “ऑयलसीड्स डेवलपमेंट प्रोग्राम” से किसानों को बीज, प्रशिक्षण और सब्सिडी की सुविधा भी दी जा रही है।इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि सरसों की सही किस्म का चुनाव, किसान की आमदनी को कई गुना बढ़ा सकता है।”

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