Karwa Chauth 2025: सुहागिनों का सबसे बड़ा व्रत, चाँद की पूजा से सजेगा करवा चौथ, जानिए तिथि, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और परंपरा का महत्व

Karva Chauth 2025

Karwa Chauth 2025:भारत में त्योहारों की बात आते ही हर उत्सव अपने आप में अनूठा होता है, लेकिन अगर सबसे भावनात्मक और प्रेम से जुड़ा कोई त्योहार माना जाए तो वह है करवा चौथ। यह सिर्फ एक व्रत नहीं, बल्कि पति-पत्नी के अटूट प्रेम, समर्पण और आस्था का पर्व है। हर साल यह व्रत कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है।
करवा चौथ 2025 का इंतजार हर सुहागिन महिला बड़ी बेसब्री से कर रही है, क्योंकि यह दिन उनके वैवाहिक जीवन में मंगलकामना और लंबी उम्र का प्रतीक होता है।

करवा चौथ 2025 की तिथि, मुहूर्त और व्रत का समय

करवा चौथ 2025 की तिथि:
शनिवार, 11 अक्टूबर 2025 (Kartika Krishna Chaturthi)

चतुर्थी तिथि आरंभ:
11 अक्टूबर, सुबह 06:03 बजे

चतुर्थी तिथि समाप्त:
12 अक्टूबर, सुबह 04:32 बजे

पूजा का शुभ मुहूर्त:
शाम 05:45 बजे से 07:00 बजे तक (अधिकांश उत्तर भारत के राज्यों के अनुसार)

चंद्रोदय का समय:
रात 08:17 बजे के आसपास (शहर अनुसार भिन्नता संभव)

इस दिन विवाहित महिलाएँ सूर्योदय से पहले सरगी (Sargi) खाकर व्रत आरंभ करती हैं और दिनभर निर्जला उपवास रखती हैं — यानी बिना पानी और अन्न ग्रहण किए, अपने पति की दीर्घायु के लिए भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश की पूजा करती हैं।

करवा चौथ की खासियत यह है कि इसे सिर्फ उत्तर भारत में ही नहीं, बल्कि अब महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश और दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में भी मनाया जाने लगा है। सोशल मीडिया और टीवी सीरियल्स ने इस त्योहार को आधुनिक रूप में पेश कर दिया है, जिससे युवतियाँ भी इसे अपने तरीके से मनाने लगी हैं।

Karwa Chauth 2025,का इतिहास, पौराणिक कथा और धार्मिक महत्व

करवा चौथ की परंपरा हजारों वर्षों पुरानी है। इसकी शुरुआत प्राचीन भारत में तब हुई थी जब महिलाएँ अपने पतियों के युद्ध में जाने के बाद उनकी सुरक्षा और दीर्घायु के लिए व्रत रखती थीं। “करवा” का अर्थ होता है मिट्टी का कलश और “चौथ” का अर्थ होता है चतुर्थी तिथि।

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Karwa Chauth 2025,पौराणिक मान्यता के अनुसार, माता पार्वती ने सबसे पहले यह व्रत भगवान शिव के लिए रखा था। कहा जाता है कि उनकी तपस्या और समर्पण से प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें “सौभाग्यवती रहने का वरदान” दिया। तभी से यह व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए शुभ और मंगलकारी माना जाता है।

एक प्रसिद्ध कथा वीरवती की भी सुनाई जाती है। वीरवती नाम की एक महिला ने अपने पति की लंबी आयु के लिए करवा चौथ का व्रत रखा था। जब वह बहुत प्यास और भूख से व्याकुल हुई, तो उसके भाइयों ने छल से चांद जैसा दीप दिखाकर व्रत खुलवाया। परिणामस्वरूप उसके पति की मृत्यु हो गई। लेकिन जब वीरवती ने सच्चे मन से दुबारा व्रत किया और माता पार्वती की पूजा की, तब उसके पति को पुनः जीवन मिला।
तभी से यह व्रत अटूट प्रेम, निष्ठा और आस्था का प्रतीक बन गया।

धार्मिक दृष्टि से भी यह व्रत अत्यंत शुभ माना गया है। स्कंद पुराण और पद्म पुराण में भी इसका उल्लेख मिलता है।इस दिन चंद्र देव को अर्घ्य देकर पूजा करने से दांपत्य जीवन में मधुरता और स्थायित्व आता है।

पूजा विधि, परंपरा और आधुनिक युग में करवा चौथ का बदलता रूप

सुबह सूर्योदय से पहले महिलाओं को उनकी सास द्वारा “सरगी” दी जाती है, जिसमें मिठाई, फल, सूखे मेवे और पारंपरिक भोजन शामिल होते हैं। यह सरगी व्रत रखने वाली महिला के लिए आशीर्वाद स्वरूप होती है।
दिनभर महिलाएँ निर्जला व्रत रखती हैं, यानी न तो पानी पीती हैं और न ही कुछ खाती हैं। दिनभर वे अपने घरेलू कार्यों को पूरा करने के बाद शाम को करवा चौथ की पूजा की तैयारी करती हैं।

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पूजा विधि:

  • शाम को महिलाएँ नए वस्त्र, पारंपरिक साड़ी या लहंगा पहनती हैं।
  • चौकी पर मिट्टी का करवा रखा जाता है, उसमें पानी भरा जाता है।
  • माँ पार्वती, भगवान शिव, गणेश जी और कार्तिकेय की मूर्ति रखी जाती है।
  • कथा सुनाई जाती है, जिसमें वीरवती की कहानी होती है।
  • पूजा के बाद महिलाएँ एक-दूसरे को करवा चौथ का करवा देती हैं — इसे “करवा देना” कहा जाता है।
  • अंत में जब चाँद निकलता है, तो महिलाएँ छलनी से चाँद को देखती हैं और फिर अपने पति का चेहरा देखकर अर्घ्य देती हैं।
  • पति अपनी पत्नी को पानी पिलाकर व्रत तुड़वाता है।

यह पूरा दृश्य प्रेम, स्नेह और परंपरा का प्रतीक होता है।

आधुनिक युग में करवा चौथ अब केवल परंपरा नहीं, बल्कि एक भावनात्मक अवसर बन गया है। आज के समय में पति भी पत्नी के साथ व्रत रखने लगे हैं, जो “समानता और प्रेम” का प्रतीक माना जाता है।
फिल्मों और सोशल मीडिया के प्रभाव से यह त्योहार Karwa Chauth 2025अब युवा पीढ़ी में भी लोकप्रिय हो चुका है।

सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से करवा चौथ का महत्व

करवा चौथ केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि सामाजिक एकता और स्त्री-शक्ति का भी प्रतीक है।
इस दिन महिलाएँ एक-दूसरे के साथ मिलकर पूजा करती हैं, एक-दूसरे को आशीर्वाद देती हैं और अपने अनुभव साझा करती हैं। यह त्योहार भारतीय संस्कृति में स्त्री के स्थान, उसकी निष्ठा और प्रेम की गहराई को दर्शाता है।

सामाजिक स्तर पर यह त्योहार परिवारों में एकता और आपसी संबंधों को मजबूत करता है।
हर साल करवा चौथ के मौके पर बाजारों में चूड़ियाँ, मेंहदी, साड़ियाँ, गहने और मिठाइयों की बिक्री कई गुना बढ़ जाती है। यह त्योहार भारतीय अर्थव्यवस्था में भी उत्सव का माहौल बनाता है।

आजकल कई शहरों में “करवा चौथ सेलिब्रेशन इवेंट्स” भी आयोजित किए जाते हैं, जहाँ पति-पत्नी साथ में पूजा करते हैं और फोटोशूट करवाते हैं। इससे परंपरा में आधुनिकता का मिश्रण दिखाई देता है।