अश्विनी कुमार पांडा घूसकांड:भारत में भ्रष्टाचार कोई नया विषय नहीं है। आम जनता से लेकर उच्च पदस्थ अधिकारियों तक, रिश्वतखोरी की घटनाएँ आए दिन सामने आती रहती हैं। हाल ही में एक और मामला प्रकाश में आया है जिसने पूरे प्रशासनिक तंत्र को शर्मसार कर दिया। तहसीलदार अश्विनी कुमार पांडा को विजिलेंस टीम ने मात्र 15,000 रुपये की घूस लेते रंगे हाथों दबोच लिया। यह घटना इस बात का प्रतीक है कि किस तरह कुछ अधिकारी अपनी ईमानदारी को छोटे-छोटे पैसों में बेच देते हैं।
विजिलेंस 15,000 की घूस पर रंगे हाथों गिरे अधिकारी
विजिलेंस की टीम ने तहसीलदार अश्विनी कुमार पांडा को जाल बिछाकर पकड़ा। शिकायतकर्ता ने बताया था कि पांडा साहब काम कराने के बदले 15,000 रुपये रिश्वत मांग रहे थे। इसके बाद विजिलेंस ने कार्रवाई की और जैसे ही पैसे हाथ में आए, अधिकारी को गिरफ्तार कर लिया गया।
इतनी छोटी रकम में पकड़े जाने की खबर ने सोशल मीडिया पर लोगों को चौंका दिया। कई यूज़र्स ने टिप्पणी करते हुए कहा कि “टॉपर रहकर भी इतना गिर जाना शर्म की बात है।”
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भ्रष्टाचार की जड़ें और जनता का आक्रोश
इस घटना के बाद जनता के मन में आक्रोश और गुस्सा देखा गया। लोगों ने सवाल उठाया कि जब शिक्षित और टॉपर अधिकारी ही इस तरह घूसखोरी में लिप्त पाए जाते हैं, तो आम आदमी किससे न्याय की उम्मीद करे?
भ्रष्टाचार न केवल सरकारी कामकाज की गति को धीमा करता है, बल्कि जनता का विश्वास भी खत्म करता है। यही कारण है कि विजिलेंस जैसी एजेंसियों का काम बेहद अहम माना जाता है।
कड़ी सज़ा और सख्त कार्रवाई की मांग
सोशल मीडिया पर लगातार यह मांग उठ रही है कि सिर्फ गिरफ्तारी से काम नहीं चलेगा, बल्कि ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए। कई लोग यह भी कह रहे हैं कि जब तक सख्त सज़ा नहीं मिलेगी, तब तक भ्रष्टाचार की जड़ें खत्म नहीं होंगी।
कानून विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे मामलों में त्वरित अदालत (Fast Track Court) के माध्यम से सुनवाई कर दोषियों को उदाहरण स्वरूप सज़ा देनी चाहिए ताकि भविष्य में कोई भी अधिकारी ऐसी गलती करने की हिम्मत न करे।


